तुम कहीं वक़्त की बातों में न आ जाना. ये कभी मुझसे भी कहता था कि मैं तेरा हूँ.

समय का खेल देखिये साहब कभी जमाना झुक कर सलाम करता‌ था !आज सच की ईबारत लिखने के‌‌ कारण जेल से जंग लड़ना पड़ रहा है।अजीब दास्तान है हिन्दुस्तान के वजीर की हिटलर की नजीर बनकर फकीर‌ मनमानी पर उतर आया!

जो कह दिया वहीं कानून! जिधर चल दिया जो चाहा कर दिया गजब का जनून!? लोकतन्त्र की ब्यवस्था को संचालित करने में अहम भुमिका निभाने वाला चौथा स्तम्भ इनके दम्भ का शिकार हो रहा‌ है!

धीरे धीरे अपना अस्तित्व खो रहा है?।सारे देश में बर्बादी की हवा बह‌ रही‌ है।आज पब्लिक भी कह रही है मजा ले रही है? जैसी करनी वैसी भरनी।? वास्तविकता के धरातल पर कदम ताल करती वर्तमान ब्यवस्था जो आस्था के नींव पर लोकतन्त्र की बली लेकर ख्वाबी महल बना रही है

इस सदी की बर्बादी की निशानी बनकर इतिहास‌के पन्नों में हिटलर मुसोलीन के बाद अपना वजूद दर्ज करा रही है?आज के परिवेश में भ्रष्टाचारीयों के खेल को उजागर किया तो जेल जाना तय है!पत्रकारों पर ज़ुल्म ढा कर पैदा किया जा रहा भय है!समय का खेल है साहब!सच लिखना अब आसान नहीं है!अफसरशाही अब परवान चढ़ रहा है! पुराना भारत नया हिन्दुस्तान बन रहा है?

लगातार पत्रकारों पर हमला हो रहा है! बेलगाम अधिकारी जिनके दम पर कुलांचे मारते हैं भ्रष्टाचारी प्रसन्नचित है!कारण आप के सामने है! भ्रष्टाचार को उजागर करने वाला ही बना दिया जा रहा है अपराधी! पब्लिक तमाशबीन बनकर देख रही है अपनी बर्बादी?देश में फकीर राजा है?

प्रदेश में योगी का बज रहा सनातनी बाजा है?लूटेरा अधिकारी भ्रष्टाचारी, दुराचारी चोर कर्मचारी ‘मुस्करा रहे हैं। कलम का सिपाही जो दिन रात मेहनत कर सारी फजीहत झेल कर भ्रष्टाचारीयों से जंग लड़कर शासन तक अपनी बात गरीब असहाय जनता के शोषण की इबारत लिखकर पहुंचाता था?

पब्लिक को राहत देकर चैन पाता था! आज पश्चाताप का आंसू रो रहा है?आखिर चौथा स्तम्भ पर खतरा क्यो! भरष्टाचारीयो अधिकारीयों पर सरकार का बचाव का पहरा क्यो? यह बात आज गली नुक्कड़ चौराहो पर होने लगी है! देश का लोकतंत्र खतरे में है! बिपक्ष मुर्दा हो गया है!लोगों की रहनुमाई करने वालों की सुख सुविधा उनकी कमाई में चार-चांद लगता जा रहा है!

गरीब मजलूम असहाय तबाही के रास्ते पर चल निकला है!गांव हो या शहर सरकारी अमला के खिलाफ सबके दिल में भरता जा रहा है जहर! पत्रकार समाज आज वर्तमान में अपना स्वाभिमान बचाने में भी अपने को अक्षम पा रहा है! सामने गलत होता देखकर भी नहीं बता रहा है?

यह दहशत भरी सुबह दहशत भरी शाम सच लिखने का अन्जाम देखकर खुद दहशत मे‌:है।उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर ,कानपुर, आगरा, गोरखपुर, बलिया , के बाद आजमगढ़ में भ्रष्टाचार को उजागर करने वाला पत्रकार अफसरशाही का शिकार हो गया।

अभी बलिया में आग लगी थी पत्रकार सड़क पर आन्दोलन कर रहे हैं। अब आजमगढ़ भी सुलगने लगा है!,सारा देश इस आग की चपेट में आ रहा है।आखिर कब तक चलेगा इस तरह का खेल? आखिर योगी जी आप चाहते क्या है? सच लिखने पर जेल कहां का न्याय है?

आप देते क्या है किसी भी पत्रकार को ?आप की सरकार में भी सियासतदार मालामाल होता जा रहा है !सारी सुविधाएं उनकी झोली में डालते जा रहें हैं? जरा उनकी सुबिधाओ में कटौती कर के दिखा दें! जो आप के सियासतदार लूट मचाये है उन पर कार्रवाई करके दिखा दें!

आलीशान महलों में रहने वाले भ्रष्टाचारी जिनकी आमदनी पांच साल में कमाल की हो जाती है उन पर अंकुश लगा कर दिखा दें!

सारा कानून आम आदमी! सुबिधा बिहीन पत्रकारों के लिये ही क्यो? आज नहीं तो कल इसका खामियाज सरकार को भुगतना ही पडेगा! बिद्वेश की आग को हवा मिलने लगी!आग धीरे धीरे भड़कने लगी है !

आने वाले कल के चुनाव में इसका सार्थक परिणाम जरुर मिलेगा! वक्त कहां किसी को बख्सता है? वक्त के पास कहां रहमो करम होता है! वक्त तो सूरज को रोज झूका देता है!
जगदीश सिंह सम्पादक राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय पत्रकार संघ भारत

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