रोजी- रोटी और परपंराओं के दीपक से सजा बाजार

न्यूज 22 इंडिया
बाराबंकी उत्तर प्रदेश
दीपावली की सही सार्थकता तो मिट्टी के दीये जलाने से ही पूरी होती है। पिछले कई वर्ष से लगातार दीपावली पर दिये बनाकर बेचते आये है पर पहले की तरह अब मिट्टी के दीये खरीदने वाले कम हो गए हैं।
जबकि दिवाली कई लोगों के लिए अतिरिक्त खुशियां लाती है, जिनमें मिट्टी के दीये बनाने वाले लोग भी शामिल हैं। किंतु साल दर साल गिरावट के बावजूद मिट्टी के दीये बनाने वाले निराश नहीं हैं।

उनका कहना है कि पिछले कुछ सालों से मिट्टी के दीपकों के खरीदारों में वृद्धि हुई है जो उनके लिए संतोषजनक है। जबकि दीपों का त्यौहार दीपावली नजदीक है। कुम्हार गली- गली, चौक- चौराहों पर अब दीये बेचने के लिए निकल रहे हैं अभी भी लोग दीपावली के मौके पर मिट्टी के दीपों की माला लगाकर अपने घरों को रोशन करते हैं।

जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शिल्पकारों को प्रोत्साहन देने जनता से अपील कर रही है कि मिट्टी से बने दिये ही खरीदे ताकि उनके घर भी दीपावली की रौशनी से जगमागाये। बता दे की दीपावली पर्व महज कुछ ही दिन बचे है, ऐसे में हर ओर तैयारी तेज हो गई है।

कुम्हार भी मिट्टी के दीये बनाकर स्टाक कर रहे हैं। मिट्टी के दीये जलाने से एक तरफ अपना घर रोशन होता है। वहीं दूसरी ओर कुम्हारों के घरों का अंधेरा भी दूर होता है। इस प्रकार के दीये जलाने की परंपरा वर्षो से चलती आ रही है। जहां गांव के बुजुर्र्गो की माने तो घी से दीये जलाना अधिक शुभ होता है।

और माता लक्ष्मी को प्रश्न्न करने के लिए लोग घरों व अपनी दुकानों में इसका प्रयोग जरूर करते हैं। मिट्टी के दीये में तील व सरसों का तेल जलाने से किट-पतंगों का भी खात्मा होता है। साथ ही वातावरण के लिए भी यह सही होता है, मगर बढ़ती महंगाई व भीसड बारिश ने धान की फसल चौपट कर दिया जिसके कारण किसानों व कुम्हारों की चिंता भी बढ़ी हुई है।

बता दे की दीपावली वह मौका होता है जब दीयों की रोशनी में लोग मां लक्ष्मी और गणेश की पूजा का उनसे सुख-समृद्धि की कामना करते हैं, लेकिन दीपावली पर जलने वाले दीयों से लेकर लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां बनाने वाले कुम्हार अब भी चिंता में हैं। ऐसे में कुम्हार अपने ही चाक पर अपना वजूद तलाश रहे हैं।

कड़ी मेहनत से मिट्टी के दीपक, खिलौना और बर्तन बनाने वालों को खरीदार के लिए भी रोना पड़ रहा है। एक दौर था जब कुम्हार दीपावली का बेसब्री से इंतजार करते थे। और आज के दौर में झालर- बत्तियों से कुम्हारों के व्यवसाय पर पड़ा असर कुम्हारों के दीपक से दमकती दीपावली पर चाइनीज झार- बत्ती भारी पड़ रही है।

दीपावली से दो- तीन महीने पहले जिन कुम्हारों को दम भरने की फुरसत नहीं मिलती थी, वहीं अब धीमी चाक पर कुम्हारों की जिदगी रेंगती नजर आ रही है। उनका कहना है कि व्यवसाय चाइनीज झालरों व महंगाई और किसानों की करीबन चार साल से बरबाद हो रही खेत की फसलों के कारण किसान भी लाचार होता जा रहा है

जिससे हम लोगों का व्यवसाय ठप हो रहा है। कई पुश्तों से यही काम करने वाले कुम्हार दीपावली से पूर्व चिंता में डूबे हैं। इनलोगों का कहना है कि मिट्टी से तैयार एक-दो रुपये के दीये को खरीदते समय लोग मोल- भाव करना नहीं भूलते,

मगर बाजार में एमआरपी पर लोग बड़े शौख से झालरों की खरीदारी करते हैं। उनका कहना है कि समय के साथ चिकनी मिट्टी के स्त्रोत एवं जगहों की कमी से उन्हें भी मिट्टी खरीदनी पड़ रही है। ऐसे में उन्हें पूर्व के तरह मुनाफा नहीं हो पाता है फिर भी आस लगाए रहते हैं।

वहीँ दीपावली में पारंपरिक तौर पर सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के दीये अब सिर्फ शगुन के तौर पर इस्तेमाल होने लगे हैं।

पहले कुम्हारों को त्योहारों का बेसब्री से इंतजार रहता था कि दीये की मांग पूरी करने के लिए तैयारी महीनों पहले शुरू कर देते थे। जो अब लगातार बढ़ती मंहगाई और लोगों की बदलती रुचि से अब उनके इस पेशे पर संकट मंडराने लगा है।

तो वहीं घर पर अगर सरसों तेल के दस मिट्टी के दीये एक घंटा भी जलाए जाएं तो हवा में 15 प्रतिशत तक प्रदूषण कम होगा। बीमारी फैला रहे आधे से अधिक मच्छर और कीटाणुओं का खात्मा होगा। उल्टे चाइनीज या फिर इलेक्ट्रॉनिक रंगीन लाइटें पर्यावारण सेहत के लिए खतरनाक है।

पर्यावरण विशेषज्ञों ने यह खुलासा किया है कि हिंदू मान्यताओं में घर में मंदिर में घी का दीपक जलाते हैं। दिवाली पर घर के दरवाजे और नाली पर दीपक जलाए जाते हैं। दिवाली के दिन तो हर घर में सरसों तेल और घी के दीप जलते थे।

दीप जलाना ही अपने आप में शुद्धता का प्रतीक है। लाइट के पास मच्छर बैक्टीरिया का आना आम है। अगर दीप जलता है तो वह इन्हें खत्म करता है। सरसों तेल का दीया जलने से हवा को दूषित करने वाले सूक्ष्म कण जल जाते हैं।

दीये की आगे से निकलने वाली आग और हल्का धुआं बैक्टीरिया को खत्म करता है। इसलिए घर से निकलने वाले गंदे पानी की जगह पर भी दीये लगाने की मान्यता है।
रिपोर्ट-सत्यवान पाल

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