अब पाकिस्तान में स्थित स्वामीनारायण मंदिर का होगा जीर्णोद्धार
पाकिस्तान
भारत समेत दुनियाभर के कई देशों में स्वामीनारायण मंदिर हैं, जहां भक्तों का जमावड़ा लगता है. भारत के बंटवारे से पहले पाकिस्तान के कराची शहर में स्थित स्वामीनारायण मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भीड़ होती थी, लेकिन इसके बाद से लंबे समय तक यह मंदिर वीरान पड़ा रहा.
हालांकि अब स्वामीनारायण मंदिर का जीर्णोद्धार किया जाएगा. 170 साल पहले मूल स्वामीनारायण संप्रदाय कालूपुर (गुजरात) द्वारा कराची में मंदिर की स्थापना की गई थी. वर्ष 1947 में दोनों देशों के बीच विभाजन के कारण भगवान कृष्ण और स्वामीनारायण भगवान की दो मूर्तियों में से एक को राजस्थान के जालौर जिले के खान गांव में स्थापित किया गया था.
बता दें कि यह मंदिर पाकिस्तान का पहला और आखिरी स्वामीनारायण मंदिर है. मंदिर का निर्माण साल 1851 में शुरू हुआ था और तीन साल बाद साल 1854 में यह बनकर पूरी तरह से तैयार हो चुका था. 170 साल पुराने इस मंदिर का परिसर 27,012 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. साल 1947 के पहले तक इस मंदिर में दर्शन हेतु स्थानीय हिंदुओं के साथ ही आसपास के हिंदू भी जाते थे. हालांकि विभाजन के दौरान पाकिस्तान में हुए दंगों के बाद से मंदिर की स्थिति पूरी बदल गई.
स्वामीनारायण मंदिर का होगा जीर्णोद्धार
विभाजन के कई वर्षों बाद तक मंदिर की स्थिति बेहद खराब थी, लेकिन फिर स्थानीय हिंदुओं ने प्रयास कर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. चूंकि इस मंदिर के आसपास हिंदुओं की बस्ती है, ऐसे में यहां हर रोज पूजा-पाठ होती है. साथ ही त्यौहार के समय यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी यहां आते हैं. हालांकि अब मंदिर का जीर्णोद्धार फिर से किया जाएगा.
स्वामीनारायण भगवान मंदिर के जीर्णोद्धार की योजना गुजरात में स्थित कालूपुर स्वामीनारायण संप्रदाय के दो संतों ने तैयार की है.
के. स्वामी और धर्मस्वरूपदासजी कराची जाएंगे और उनके मार्गदर्शन में मंदिर का जीर्णोद्धार किया जाएगा. मंदिर परिसर में महिला प्रार्थना भवन, सत्संग सभा और हॉल का भी निर्माण किया जाएगा. 1969 के बाद से किसी भी मंदिर ट्रस्टी या संत ने कराची स्थित स्वामीनारायण भगवान मंदिर का दौरा नहीं किया है.
170 साल पहले बने मंदिर का होगा जीर्णोद्धार
1947 में विभाजन के दौरान भगवान स्वामीनारायण की एक मूर्ति राजस्थान के खान गांव झालोर में लाई गई थी. कराची में स्थित मंदिर में ही एक और मूर्ति रखी गई थी. सिंध क्षेत्र के हरिभक्तों द्वारा मंदिर को दान दिया जाता है. पाकिस्तान में हर साल एक से दो करोड़ रुपए का दान मिलता है. 170 साल पहले अंग्रेजों ने कराची के बंदरगाह पर इसी मंदिर के लिए 99 साल की लीज पर जमीन दी थीय अब लीज बढ़ाने के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
(टीवी 9 भारत के डेली हंट से साभार)