गुरुचरणों में समर्पण शिष्य को डिगने नहीं देता-संजय दास

बोले हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञान दास जी महाराज के उत्तराधिकारी किसी एक घटना से नहीं प्रभावित हो सकती गुरु -शिष्य परंपरा

न्यूज 22 इंडिया

कृष्ण कुमार द्विवेदी (राजू भैया)

अयोध्या उत्तर प्रदेश

श्री गुरुचरणों में यदि समर्पण का भाव है तो इसका प्रभाव किसी भी शिष्य को कर्तव्य पथ से डिगने नहीं देता

उक्त बात श्री हनुमान गढ़ी अयोध्या धाम के महंत ज्ञान दास जी महाराज के उत्तराधिकारी युवा संत एवं संकट मोचन सेना के अध्यक्ष स्वामी संजय दास जी महाराज ने आज हुई सीधी वार्ता में कही।

तिजारत से वार्ता के दौरान संजय जी महाराज ने कहा कि भारतीय अध्यात्म एवं हिंदुत्व की मेरुदंड गुरु एवं शिष्य परंपरा ही है। हमारी संस्कृति में सद्गुरु का स्थान भगवान से ऊपर है।

ऐसे में यदि शिष्य का पालन पोषण अनुशासित ढंग से हुआ है और शिष्य ने अपने गुरु के श्री चरणों में अपना समस्त सुख देखा है। तो ऐसा शिष्य कभी भी अपने कर्तव्य पथ से डिग नहीं सकता।

देश में इस समय के चर्चित दिवंगत नरेंद्र गिरी जी महाराज के मामले पर संजय दास जी कहते हैं कि किसी एक घटना से आप देश एवं विश्व के सभी सद्गुरु एवं शिष्य के आत्मीय संबंधों पर उंगली नहीं उठा सकते ।

उन्होंने कहा कि यदि बचपन से सद्गुरु के चरणों की कृपा मिले, ज्ञान मिले! तो सच्चा शिष्य कभी भी लोभ एवं लालच, व्यभिचार में नहीं फंसता ।उन्होंने कहा मेरी तो सारी दुनिया मेरे सतगुरु के चरणों में है। जब गुरु जी की कृपा मिल गई तो दुनिया की कोई भी सौगात मेरे लिए कुछ नहीं है।

उन्होंने कहा कि जो सतगुरु अपने शिष्य की छोटी सी भी गलती पर उसे डांटते हैं, समझाते हैं। उनका शिष्य कभी पथभ्रष्ट नहीं होता। संजय दास ने कहा और जो शिष्य अपने सद्गुरु के बताए रास्ते पर नहीं चलते उनका कभी कल्याण नहीं होता है।

संजय दास जी ने प्रयागराज में घटी नरेंद्र गिरी जी महाराज की घटना को अत्यंत दुखद बताया। उन्होंने कहा कि इस मामले में जांच जारी है जो कुछ होगा वह जल्द ही सामने आएगा ।

बहुत कुरेदने पर उन्होंने कहा कि कहीं ना कहीं जो कुछ भी है उसके पीछे लालच ही केंद्र बिंदु है? एक प्रश्न के उत्तर में संजय दास ने कहा कि संत को संत जैसा आचरण ही करना चाहिए । संत अध्यात्म की दुनिया के पथ प्रदर्शक हैं। उनके व्यवहार से समाज का निर्माण होता है ।

ऐसे में आज के परिवेश में यह जरूरी है कि संत समाज ज्यादा सजग एवं सतर्क रह कर हिंदुत्व एवं अध्यात्म तथा मानवता ,कर्तव्य परायणता के स्वरूप को साकार करें ।एवं समाज के निर्माण में अपना पुनीत योगदान दें।

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