अखिलेश यादव जी असलियत स्वीकारें? मुलायम बने मुलायम
रामपुर एवं आजमगढ़ का यही है संदेश? अपने गिरेबाँ में झांकों अखिलेश!
मुस्लिमपरस्ती में भाजपा विरोध की आड़ में हिंदुत्व विरोध की गलती को भी होगा सुधारना?
उलूल-जुलूल बयान, नाहक की अकड़न ,चापलूसों की चापलूसी सपा को करती रहेगी सफा?
कृष्ण कुमार द्विवेदी (राजू भैया)
रामपुर एवं आजमगढ़ में सपा की जागीर पर भाजपा का कब्जा हो गया। उम्मीद के मुताबिक सपाध्यक्ष अखिलेश यादव भाजपा पर तमाम तोहमतें मढ़ने में जुटे हुए हैं। काश श्री यादव अपने गिरेबॉ में भी झांकते और कुछ नया करने का जज्बा दिखाते! स्पष्ट है कि उलूल -जुलूल बयान, फालतू की अकड़न, सत्ता के लिए कुछ ज्यादा ही तड़पन ऐसे कई कारण हैं? जो लगातार सपा को हार की सड़न में डुबोते जा रहे हैं। इसलिए सपा सुप्रीमो को वैचारिक रूप से मुलायम तो होना ही पड़ेगा! अन्यथा सपा लगातार सफा होती ही जाएगी?
सपा संरक्षक व पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी को बनाकर उसका जलवा भी कायम कर रखा था। तभी तो सपा कार्यकर्ता कहते थे जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है। लेकिन आज बीते कई चुनाव पर यदि दृष्टि डालें तो सपा की हालत लगातार पतली होती जा रही है। संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में सपाध्यक्ष अखिलेश यादव ने यह मान लिया था कि उत्तर प्रदेश में उनकी सरकार आ रही है। लेकिन जब चुनाव परिणाम आया तो उनकी सीटें बढ़ी लेकिन सत्ता उनसे बहुत दूर खड़ी नजर आई।
अखिलेश यादव ने फिर वही रोना रोया भाजपा ने बेईमानी करवा दी। भाजपा ने लोकतंत्र के मूल्यों को ध्वस्त किया आदि आदि! जहां तक सवाल है भाजपा का तो भाजपा का चुनावी प्रबंधन कैसा है ।अखिलेश यादव ने उस तक पहुंचने की कभी कोशिश ही नहीं की? अपनी कमी को छुपाने के लिए दूसरों पर ठीकरा फोड़ने की आदत अखिलेश यादव को लगातार असफल नेता की पंक्ति में ले जा रही है?
सूत्रों के मुताबिक भले ही लोकसभा चुनाव 2024 में हो लेकिन भाजपा का बूथ स्तरीय तैयारी कार्यक्रम अभी से जारी है। सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि अखिलेश यादव भाजपा के बिछाए जाल में ऐसा फंसते हैं कि भाजपा उसका लाभ उठा ले जाती है! और सपा को इसका भारी नुकसान उठाना पड़ता है? वर्तमान में हुए उपचुनाव में आजमगढ़ एवं रामपुर में लोकसभा का चुनाव भाजपा ने जीत लिया है आजमगढ़ से भोजपुरी अभिनेता दिनेश यादव निरहुआ और रामपुर से एक जमाने में सपा नेता आजम खान के नजदीकी रहे अब भाजपा प्रत्याशी घनश्याम लोधी चुनाव जीत गए ।जाहिर है कि रामपुर, आजमगढ़ समाजवादी पार्टी का अभेद्य किला माना जाता रहा है। लेकिन यहाँ भी भाजपा ने जिस तरह से सेंध लगाई है उसने राजनीतिक विश्लेषकों को भी चौंका दिया है।
फिलहाल अखिलेश यादव का वही परंपरागत गाना जारी है। भाजपा सरकार ने चुनाव में गड़बड़ी कराई गई। लोकतांत्रिक व्यवस्था को ध्वस्त किया गया आदि-आदि। वहीं जेल से निकले आजम खान ने भी मुंसिफ और मुजरिम का उदाहरण देकर रामपुर की हार पर भूसे पर लीपने का काम किया।
अखिलेश यादव को इस पर मंथन करना चाहिए कि मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी आखिरकार मजबूत क्यों नहीं हो रही है। क्योंकि सपा की टक्कर भाजपा जैसी विश्व की सबसे बड़ी पार्टी से है। इसके लिए अखिलेश यादव को सबसे पहले अपनी अकड़न छोड़नी होगी?
सपा के जमीनी महायोद्धाओं को एकजुट करना होगा ?चापलूसों से दूरी बनानी होगी? केवल जो हम कह रहे हैं वही सही है इस वैचारिक बीमारी से भी दूर रहना होगा? जो अपने कड़वा सत्य बोले उस कड़वे सच में भविष्य की मिठास को पहचानना होगा?
हालात यह है कि अखिलेश यादव का रूप चाहे- अनचाहे ऐसा नजर आ जाता है कि जैसे लगता है कि वह हिंदुत्व के विरोधी हैं! वह लाख कहें कि हम सभी को साथ लेकर चलते हैं लेकिन कभी-कभी ऐसी स्थिति होती है कि वह भाजपा का विरोध करते -करते हिंदुत्व के विरोध पर उतर आते हैं ?बीते कई घटनाक्रमों को देखा जाए तो अखिलेश यादव के ऐसे कई सस्ते में बयान आए है जो कि एक पूर्व मुख्यमंत्री के मुंह से शोभा नहीं देते?
चर्चा है कि अखिलेश यादव की राजनीति आज पूरी तरह से अघोषित रूप से अगड़ों के विरुद्ध प्रारंभ है? इसके संकेत मिलते हैं क्योंकि अखिलेश कुंडा में जाकर जनसत्ता दल के नेता राजा भैया को नहीं जानते और कुंडी लगाने की बात करते हैं? पृथ्वीराज चौहान फिल्म पर भी वह अजीबोगरीब बयान देते है? ज्ञानवापी का जब मामला उठता है तब वह पीपल के नीचे पत्थर रखने के जैसी हल्की बात करते हैं? जबकि पूर्व में वैक्सीन भाजपा की है जैसे अन्य बयान देकर भी वे अपने व्यक्तित्व को पहले ही हल्का कर चुके हैं?
रामपुर और आजमगढ़ में सपा हार गई। अखिलेश यादव अज्ञात कारणों से यहां प्रचार करने नहीं गए। रामपुर में हो सकता है आजम खान की वजह से ना गए हो? लेकिन आजमगढ़ में उनके भाई चुनाव लड़ रहे थे फिर भी वह प्रचार करने नहीं गए!
चर्चा है कि इसके लिए उन्हें आजमगढ़ के लोगों ने आमंत्रित भी किया? श्री यादव का यह तरीका आजमगढ़ के लोगों को पसंद नहीं आया। उधर बसपा प्रत्याशी से भी यहां सपा की खटिया खड़ी हो गई! जबकि दूसरी ओर रामपुर में जीते भाजपा प्रत्याशी घनश्याम लोधी आजम खान की रग रग से वाकिफ थे और आखिरकार उन्होंने भी सपा को यहां सफा कर दिया। चाहे विधानसभा चुनाव रहा हो या फिर बाद में राज्यसभा अथवा विधान परिषद का चुनाव! यहां भी सपा नेतृत्व के निर्णय में कुछ ना कुछ कमी जरूर नजर आई?
प्रत्याशी चयन को लेकर खूब हल्ला हुआ! लेकिन अखिलेश यादव ने जो चाहा वही किया है। अखिलेश यादव को अपना दिल बड़ा करना होगा? सपा परशुराम जयंती एवं भगवान परशुराम की बात तो करती है? लेकिन जब मौका आता है। ब्राह्मणों को आगे बढ़ाने का तो वह इसमें पीछे खड़ी दिखाई देती है?
चर्चा है कि सपा में जो अगड़े वर्ग के नेता आज मजबूती से खड़े हैं! उनके नीचे की भी जमीन जातिवादी जहर में बुझे हुए सपा के कुछ चापलूस खींचने में जुटे हुए हैं? सपा को इससे बचना होगा। यदि अखिलेश यादव भाजपा की निंदा एवं सत्ता की बेचैनी तथा अपनी अकड़न से छुट्टी पा जाएं और कुछ समय सतर्क व संयत मन से समाजवादी पार्टी को आगे बढ़ाने में दें तो शायद सपा की स्थिति अच्छी हो सकती है।
एक पत्रकार व एक नागरिक के रूप में मै कृष्ण कुमार द्विवेदी राजू भैया यह कह सकता हूं कि अखिलेश यादव को यह समझना होगा कि आज हिंदुत्व को नकारा नहीं जा सकता। जिस प्रकार से मुस्लिम परस्ती में वे भाजपा का विरोध करते- करते हिंदुत्व का विरोध कर जाते हैं? उसका भी नुकसान पार्टी को उठाना पड़ता है? उन्हें सधे अंदाज में हिंदुत्व की पिच पर उतरना पड़ेगा! वे अकेले यादव और मुस्लिम के सहारे सत्ता पर काबिज नहीं हो सकते? भाजपा प्रत्येक चुनाव में प्रत्येक सीट पर कुछ नए प्रयोग करती है। भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं के टिकट कट जाते हैं। तो वहीं कई दिग्गज जब चुनाव जीतकर आते हैं तो उन्हें मंत्री नहीं बनाया जाता! अर्थात नए चेहरों को आगे लाने का प्रयास होता है?
लेकिन सपा में कुछ चर्चित चेहरों में ही पूरी समाजवादी पार्टी खोजी जाती है? या तो सपा के यह चर्चित चेहरे पदों की मलाई चापते हैं? या फिर इनके खास लोग? यहां यह भी कटु सत्य है कि चापलूसों की मंडली से अखिलेश यादव को दूर होना ही पड़ेगा?
समाजवादी पार्टी के धुरंधर प्रदेश व देश के कोने- कोने में है। उनको एकजुट करना पड़ेगा ।अपने दिल को बड़ा करते हुए घर से लेकर बाहर तक जो समाजवादी आज चुप हैं अथवा सपा से जा चुके हैं उनको उचित सम्मान देना होगा! सपा सुप्रीमो अपने चाचा प्रसपा नेता शिवपाल यादव से विधानसभा चुनाव में समझौता तो करते हैं लेकिन उनका उचित सम्मान नहीं कर पाते ।उससे ज्यादा सम्मान तो वह दूसरे साथी दलों के नेताओं को दे देते हैं। यह गठबंधन कम था गांठ-बंधन ज्यादा था? ऐसे कई मामले हैं जहां पर अखिलेश यादव जैसे युवा नेता के विचारों में संकीर्णता नजर आती है?
अखिलेश यादव देश व प्रदेश के भविष्य के अच्छे नेता हैं। लेकिन कोई कितना भी अच्छा हो! उसके विचारों में हल्कापन, अहम् ब्रह्मास्मि जैसे भाव आ गए तो उसका दायरा सीमित होना निश्चित है? इसलिए आजमगढ़ हो या रामपुर यहां की हार को भुलाकर अखिलेश यादव को आगे बढ़ना होगा। सियासी सफलता को हासिल करने के लिए वैचारिक रूप से मुलायम बनना होगा! जनादेश को स्वीकार करना होगा! अखिलेश जी विचार करिएगा मुलायम बनना आपके लिए, आपके भविष्य के लिए, सपा के लिए अत्यंत आवश्यक है?इसलिए मुलायम बनिए मुलायम!!